यह बात बरसाने की हैं
जब से श्री गिरिराज, कन्हैया ने उठाया अपने नख पर तब से सारा ब्रज कनुआ महाराज कहने लगा यह लीला रास है। आनंद लेना प्रेम का , यही मंजरी रस है। सारा ब्रज चौरासी कनुआ -कनुआ महाराज करने लगा।
कन्हैया के गवालबाल तो कन्हैया महाराज कर के बरसाने की गोपी को चिढ़ाने लगे।
अब यह तो किसी को बताया नहि के
बाँए हाथ के नख से उठाया है । और बायाँ हाथ राधा रानी का है क्यूँकि " वामंगसर्वभूत" बाँए अंग से रूप बनाया राधा रानी ने। यह सब बरसाने की मंजरी को पता लगा तो बोली ऐसे कैसे महाराज बन गए । उठाया हमारी स्वामिनी ने ,स्वयं बोला था ना सबके सामने
*" कचु माखन से बल बड़ा,* *कचु गवालान दिए सहाय*
*श्री राधारानी की कृपा ते मैंने गिरिवर लियो उठाय।*
उठाया राधारानी ने और नाम स्वयं को धरा लियो। महाराज मंजरियों ने एक सभा बुलायी बोली हम सब मिलकर ललिताजी के पास जाएँगी और अपनी स्वामिनीजी को महारानी बनाएँगी अब यह तो प्रेम लीला है ,ना तो यह राधारानी को पता है। कौन महाराज कौन महारानी और ना गोपाल को ।
मंजरिया दोनो को मिलवाना चाहती है और रस का आनंद लेना चाहती है।
सारी ललिताजी के पास गयी ललिता जी मुस्कुरा के बोली। " यह तो नंदगाँव के गवालान को काम ही यह है" चलो हम सब ब्रज की आदरणीय देवी पूर्णमासी देवी के पास चलते है
पूर्णमांसी देवी ब्रज की वृद्घ और हर वस्तु मुहूर्त की जानकारी रखती है पुरोहित जान लो ।सब गयी और बोली
हमको किसी भी तरह राधारानी को महारानी बनाना है । नंदगाँव के गवाल जन अपने कन्हैया को महाराज कहतै फिरते है। पूर्णमासी बोली मंजरियों घबरायो मत। आओ हम सब वृंदावन में " इमलीतला" वृक्ष के नीचे स्वामिनी का अभिषेक कर उन्हें स्वामिनी महारानी घोषित करते है।
जैसे कन्हैया के गवाल बालों ने कन्हैया का अभिषेक कर गिरिराज उठाने के बाद गोविंद कुंड बनाया
हम भी ऐसा ही करते है। याद रखना ना यह बात स्वामिनी जाने और
ना श्यामसुंदर। अब वो दिन आ गया राधारानी का अभिषेक शुरू हो गया इमलीतला मे सारी मंजरिया " तीर्थों का जल भर स्वामिनी का अभिषेक करने आ गयी
कितना मधु
कितना घृत
कितना दही
कितना दूध
कितना गंगाजल
स्वामिनी पर प्रेम पूर्वक उड़ेले जाने लगा। अब स्वामिनी का अभिषेक हो कन्हैया ना आए। ऐसा हो सकता है कन्हैया घूमते घूमते वृंदावन में भीड़ देखी तो पूछे मधुमंगल भाई यह भीड़ कैसो है। मधुमंगल बोला, ओह कन्हैया तू नाँय जाने, तू महाराज बन गया ना तब ते यह सब उत्सव कर रहे होंगे। कन्हैया और राधारानी का हृदय एक है ना। और गवाल और सखियाँ भी सब मिली हुई है युगल को मिलाने के लिए यह उत्सव मेरो महाराज बनने की ख़ुशी में नहि। किसी को महारानी बनाने की ख़ुशी में हो रहो है। क्यूँकि जब स्वामिनिजी पर दूध दही पंचगव्या उँडेला जा रहा था तब उनके अंगों के ख़ुशबू से श्यामसुंदर का रोम रोम पुलकित हो रहा था।
तो पहचान गया भाव को, आपका महाराज मधुमंगल बोला लाला मोको तो जे बरसाने की गोपिन्न दीखे,तू मान लाला यहाँ ते निकल ले, कन्हैया बोला -अरे मधुमंगल एक और तुम मोको राजा कहो,महाराजा कहो ,और एक और डरो
अब देखने दो इस महाराज के राज में उसकी प्रजा क्या कर रही है मधुमंगल जब तक तू मेरे साथ है मेरा मंगल ही मंगल है।
मधुमंगल ने जब द्वार पर ललिताजी को डंडा लिए देखा तो बोला लाला आज मधुमंगल को ही मंगल नाँय है
तो तेरो कैसो होगो, देख द्वार पर
ललिता खड़ी है डंडा लिए। अब श्यामसुंदर तो स्वामिनीजी के प्रेम रस
अभिषेक दर्शन को लालियत थे। उन्हें ललिता आदि कुछ नहि दिखता श्यामसुंदर पहुँच गए। ललिता जी से बोले
" ओह मेरी कोमलाँगि ललिताजी आज आप यहाँ बोलो मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ। ललिताजी बोली
महाराज आप यहाँ आए हो हमें बुला लिया होता। कन्हैया थोड़े " झहप से गए और बोले अरि दयमयी ललिता अंदर क्या हो रहा है। अब कन्हैया की नैन तो अंदर लगे हुए है और बात ललिता जी से कर रहा है ललिताजी बोली - देखो कन्हैया जो तेरे गवाल बाल ने तेरे को महाराज बनाय दियों ना, बस बहुत हो चुका हमारी स्वामिनी महारानी है। समझा कन्हैया " टेडी सी हँसीं कर बोला" हाँ हाँ वो ही महारानी है।अब बता अंदर क्या चल रहा है। ललिता जी बोली "अंदर हमारी स्वामिनी का अभिषेक चल रहा है महारानी बनाने का । बस यह सुन कर श्यामसुंदर जैसे अंदर जाने को आतुर होने लगे उनका रोम रोम प्रफुलित हो गया जो उन्होंने अपने पीताम्बर से छिपा लिया। श्यामसुंदर बोले, ललिता जी आप तो दया की मूर्ति हो , स्वामिनी का प्राण हो ,अरे आपके बिना तो सारा ब्रज सूना है।आप ब्रज की प्रधान गोपी हो ।
यह सब बोलते बोलते कान्हा नज़र अंदर ही रखे हुए था ललिता जी मुस्कुरायी और बोली , ओह ब्रज के अतिसुंदर गवाले , तू मुझसे क्या चाहता है भोए चढ़ा कर बोली , बस इस भक्त को आपकी महारानी का अभिषेक दर्शन करना, यह गवालान आदि पर भरोसा नाहीं करता । ये तो ऐसे ही मेरो नाम चड़ाते रहते है प्रेम करते है ना ललिता मुझसे, इसलिए परंतु असली महारानी तो राधारानी है। श्याम बोले ,ललिता देख पूरे ब्रज में दो वस्तु ही अधिक प्रसिध्द है
एक मेरो मुरली
दूसरा तेरो डंडा
दोनो ही बाँस के है । सच बोलू मैं ललिता जी,पर अभिषेक दर्शन तो तू कर लेगो, भेंट के देगो। दारी के श्यामसुंदर सोचे भेंट तो लायो ना और
यह बिना भेंट के अंदर जाने नहि देगी
अब मधुमंगल भी भाग गया। क्या करूँ अपना कर अपने कपोलों पर रख सोचने लगा पर नैन अंदर गड़ा रखे थे। अंदर से ध्वनि हुई राधारानी महारानी के जय कन्हैया ने सोचा अब देर नाहे करनी, भले ही कुछ हो जाए अभिषेक दर्शन तो करूँ। अपनी महारानी का
तभी कन्हैया ने अपनी " मुट्ठी बना ली और बोला देख ललिता, मेरे हाथ में भेंट है। इतनी बड़ी भेंट के मुट्ठी बंद करनी पड़ी ललिता जी बोली, कन्हैया छल नाहे करियों हम बरसाने वारी है
कन्हैया बोला अरे नहि ललिताजी आपसे क्या छल, आपके डाँट मार से हम वाक़िफ़ नहि है क्या।
बस छल लिया
और चल दिया
गोपाल ललिता जी हाथ पकड़ अंदर ले गयी ।कन्हैया मुट्ठी बनाय रखो ताकि भेंट लगे हाथ मे। अंदर जैसो गया, इतना सुंदर मनमोहक ख़ुशबू के श्याम मूर्च्छित होने लगा। ललिता जी ने सम्भाला, ललिताजी बोली पहले भेंट दिखा , कन्हैया बोले- गर्दन मटकाते हुए, देख ललिता जिसका दर्शन करना है। उसे भेंट दे दूँगा ।
आपको क्यूँ दिखाऊ ललिताजी बोली
चल ग़ुस्सा नाँय हो। आ कराऊ दर्शन ँ जैसे ही अंदर प्रवेश किया , इमली के पेड़ के नीचे , स्वामिनिजी सफ़ेद चमकना वस्त्र पहने सिद्धआसन में बैठ ,दोनो नेत्रो को अपने भूमि पर टिकाय, दोनो हाथो को गोद में एक दूसरे पर रख विराजमान थी श्यामसुंदर के चरणो की आहट से स्वामिनी का ध्यान भंग हुआ और उनके अंग पर लगे चंदन के सुगंध से स्वामिनीजी का रोम रोम पुलकित हुआ और अष्ट सात्विक भाव आ गए स्वामिनीजी ने श्याम को देखा ,श्याम ने स्वामिनी को । बस अविरल अश्रु धारा बह चली अब मंजरिया सब भूल गयी कौन महाराज कौन महारानी सब उस दृश्य में चित्रलिखित के भाँति पड़ गए । शांति ही शांति बस अश्रुओ के गिरने की आहट एक पल एक युग लगा मानो। मानो दोनो एक दूसरे से परस्पर एकांत मिलन चाहै सेवा प्रदान करना चाहते है। स्वामिनीजी जैसे मन से कह रही हो।
" अब आएँ हो श्यामसुंदर, मैं कब से बैठी थी। अरे मेरा अभिषेक तो आपने अपने प्रेमाश्रु से कर दिया ै अब चलो गलबाँहि डाल श्यामसुंदर मन से बोले
स्वामिनी, मुझे क्षमा कर दो।मेरा प्राण प्राण आपका अभिषेक करना चाहता है। बस एक पल में दोनो भाव की महासमाधि में चले गए और कुछ याद नही ललिताजी ने, लीला रस के आनंद में, कन्हैया को हाथ मारा और बोली, कर लिया दर्शन। चल अब दे भेंट। कन्हैया तो स्तम्भ था जैसे ही हाथ पड़ा, बोला हाँ हाँ दूँगा भेंट स्वामिनी को दूँगा अपने हाथो से।
कन्हैया पास आकर बैठ गया। ललिता जी " बोली स्वामिनी हाथ आगे बड़ायो कन्हैया कुछ भेंट देंगे। स्वामिनीजी ने अपने अति कोमल छोटे से हाथ जब निकाले । स्वामिनी बोली ललिता क्या देंगे श्याम मुझे । मुझे जो चाइए वो मिल गया ( प्रेमाश्रु) ललिता जी ( मंजरीओ के और आँख मिचकाकर) बोली, आप बड़ी भोली है, यह दर्शन कर गया । भेंट तो देगा भौए चढ़ाकर बोली " आख़िर महाराज है स्वामिनी ने हाथ बाहर निकाले , अब श्याम मुश्किल में कुछ था नहीं उनके पास तभी अपना हाथ अपने नैनो में लगे काजल को पोछा, जैसे रो रहा हो और हाथ काजल से पोंछ कर स्वामिनी के हाथ में अपना हाथ रख कुछ लिखने लगा। ललिता ने ज़ोर से हुंकार मार बोली। यह क्या भेंट है।
क्या लिख रहा है। स्वामिनीजी बोली
ललिताजी, जब लिख लेगा तो देख लेना। मेरा श्याम कुछ अनमोल भेंट है। देगा तभी श्याम ने अपने काजल से स्वामिनी के हाथ पे लिख दिया और स्वामिनी ने मुट्ठी बंद कर ली ललिता जी बोली।
दिखाओ क्या लिखा महाराज ने, स्वामिनी ने अपना " लाल रंजित मेहंदी युक्त हाथ दिखाया तो उस पर क्या लिखा था ???? े
" हे स्वामिनी आज से सारा ब्रज चौरासी मैंने आपके नाम कर दिया "
आप महारानी हुई ।
जानते हो कौन से हाथ पर लिखा , उसी बाँए हाथ पर, जिस बाय हाथ से गिरिराज उठा महाराज नाम पाया था। तो स्वामिनी ने बाँह हाथ से गिरिराज उठवायाऔर उसी के बाय हाथ पर लिखा।
ब्रज चौरासी नाम कर दियों
*ब्रज ठकुरानी की जय*
🎪 *जय गौर हरि* 🎪
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