चौधरी एक पंडित के पास
पहुंचा -"बूझा कढ़वावण" । पंडित ने
उसका हाथ देखकर एक
पोथी निकाली और एक कागज पर कुछ
आडी-टेढी लकीर निकाल कर बोला - "तेरै
तै शनीचर चढ़ रहया सै" ।
जाट - पंडित जी, इसका कोई उपाय कर ।
पंडित - पूजा-पाठ करना पड़ैगा, 21 रुपय्ये
और एक शाल दान करना पड़ैगा ।
जाट - पंडित जी, शाल तै
घणा महंगा आवैगा, इतने पईसे कोनी ।
पंडित - चल ठीक सै, 21 रुपय्ये निकाल ।
जाट - ना पंडित जी, 21 तै कोनी ।
पंडित - चल, 11 दे दे ।
जाट - पंडित जी, इतणा ब्यौंत
बी कोनी ।
पंडित - 5 रुपय्ये का ब्यौंत तै होगा ?
जाट - पंडित जी, साची बात तै या सै अक
मेरा तै सवा रुपय्ये का ब्यौंत सै ।
पंडित - चल, ठीक सै, सवा रुपय्या निकाल
।
जाट (जेब में हाथ डालकर) - ओहो, पंडित
जी, ईब तै गोझ खाली पड़ी सै -तड़कै दे
दूंगा ।
पंडित - जब तेरै धोरै
सवा रुपय्या बी कोनी, तै शनीचर के
तेरी पूंछड़ पाड़ैगा ? चढ्या राहण दे उसनै !!
Monday, January 19, 2015
चौधरी एक पंडित के पास
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